वर्षा ऋतू के प्रारंभ के साथ ही फोड़े फुंसियों का प्रकोप बढ़ जाने वाला है. सामान्य रूप से शरीर के ऐसे हिस्से जहाँ रगड़ लगती है या पसीना एकत्र होता है वहां फोड़े फुंसियाँ ज्यादा होते हैं. फिर भी यह फोड़े फुंसियाँ गुदा से लेकर कान के अन्दर तक कहीं भी हो सकते हैं.
#कारण
इसका मुख्य कारण एक विशेष प्रकार का बैक्टीरिया है जिसे स्टेफायलोकोकस औरियस कहते हैं, कई लोगों की त्वचा पर यह निवास करता है नम मौसम में इसकी वृद्धि बहुत तेजी से होती है. जब लोग अपनी त्वचा को खुजलाते है तो स्किन पर बनने वाली दरारों से यह अन्दर चला जाता है और फोड़े फुंसियाँ पैदा करता है.
अन्य दुसरे कारणों में शरीर में पित्त का बढ़ा होना , केमिकल से पकाए गए आम,जामुन,केला जैसे फलों का अत्यधिक सेवन करना आदि हैं
#जाँच और परीक्षण
वैसे तो फोड़े फुंसियाँ आमतौर पर सभी समझ जाते हैं लेकिन कई बार स्थिति जटिल भी हो जाती है और चिकित्सक की सहायता से जांच करवानी आवश्यक हो जाती है. रोग की बढ़ी हुई अवस्था में घाव का कल्चर, रक्त और मूत्र परीक्षण की सलाह चिकित्सक देते हैं. यदि फोड़े बार बार होते हों. एक ही जगह पर कई फोड़े एक साथ निकले हुए हों या फोड़े के आसपास की त्वचा लाल हो सूजी हुई और गरम हो तो चिकित्सक से जरुर मिल लेना चाहिए.
#बचाव
•यदि आप फोड़े फुंसियों से पीड़ित है अपने पर्सनल प्रयोग की चीजें जैसे तौलिया साबुन कंघी आदि दूसरों से न बांटे.
•व्यक्तिगत स्वच्छता का ध्यान रखें. अधो अंगों के बाल हटाते रहना चाहिए. नीम युक्त साबुन से स्नान करें. या नीम की पत्तियां उबाले पानी का प्रयोग नहाने में करें. डेटोल और सेवलोन का प्रयोग कर सकते हैं.
•त्वचा को रूखी खुरदुरी न रखें. तेल मालिश अवश्य करनी चाहिए .
•ऐसा भोजन कदापि न लें जो पित्त को बढाता हो . लाल मिर्च गरम मसाले कोल्ड ड्रिंक जंक फ़ूड तम्बाकू केमिकल से पकाए गए फल ये सब चीजें समस्या को और खराब कर देते हैं.
•कब्ज रहने पर यह और ज्यादा बढ़ते हैं अतः कब्ज बिलकुल भी न रहने दें.
•मधुमेह के रोगियों को अधिक सावधान रहना आवश्यक है.
कई बार लोग धुप में खड़ी बाइक आदि पर बैठ जाते हैं यह भी हिप्स पर होने वाले फोड़ों का कारण है. गरम आसन पर कभी न बैठें.
#परहेज और आहार
फोड़े फुंसियों की समस्या से बचने के लिए इम्यून सिस्टम का मजबूत होना और विषाक्त पदार्थों का शरीर से बाहर निकलना अत्यंत आवश्यक है अतः आहार भी ऐसा हो जो इस उद्देश्य में सहायक हो.
•विटामिन A और विटामिन C से भरपूर भोजन को प्राथमिकता दें. पीले फलों और नीबू को प्रतिदिन के आहार में सम्मिलित करना अनिवार्य है. जिंक और विटामिन E और C घावों के भरने और निशान पड़ने से रोकने के लिए आवश्यक है यदि विटामिन C की कमी रह जाती है तो निशान अधिक गहरे होते हैं.
•संभव हो तो प्रतिदिन नीबू पानी पिए.यह विषाक्त पदार्थ शरीर से निकाल देता है.
•आयुर्वेद की दृष्टी से इन्फेक्शन के समय चावल का परहेज आवश्यक है. अंडे मासाहार का प्रयोग भी नहीं करना चाहिए.
•जंक फ़ूड रिफाइंड का प्रयोग भूल कर भी न करें.
•खेलकूद में सम्मिलित हो जिससे रक्तपरिसंचरण बढे यह स्किन को स्वास्थ्य रखता है.
•फोड़ो को जल्दी पका देने की उत्सुकता नहीं करनी चाहिए न उन्हें किसी सलाई या अन्य नुकीली वस्तु से छेद कर पास निकलने की कोशिश करें इससे इन्फेक्शन बढ़ सकता है. इस काम के लिए चिकित्सक की सहायता लेना अच्छा है.
#आयुर्वेदिक चिकित्सा ---
नीम की नई-नई कोंपलों को सुबह खाली पेट खाना चाहिए और उसके बाद 2 घंटे तक कुछ नहीं खाना चाहिए. इससे खून की खराबी, खुजली, त्वचा के रोग, वात (गैस), पित्त (शरीर की गर्मी) और कफ (बलगम) के रोग जड़ से खत्म हो जाते हैं. बड़ों को 15 कोंपलें (मुलायम पत्तों) और बच्चों को 7 कोपलों से ज्यादा नहीं देनी चाहिए और ज्यादा समय तक भी नहीं खाना चाहिए नहीं तो मर्दाना शक्ति भी कमजोर हो जाती है.
तीन भाग आवलाचूर्ण और एक भाग हल्दी चूर्ण का सेवन अच्छे परिणाम देता है
बालतोड़ की बिलकुल शुरुवाती अवस्था में बरगद का दूध लगा देने से फुंसी वही की वहीँ सूख जाती है. बढ़ी हुई अवस्था में बालतोड़ पर न लगाये दुसरे फोड़ों पर लगा सकते हैं फूटकर बह जायेंगे.
शीशम के पत्तों का 50 से 100 मिलीलीटर काढ़ा सुबह-शाम पीने से फोड़े-फुन्सी नष्ट हो जाते हैं
बैंगन की पट्टी बांधने से फोड़े जल्दी पक जाते हैं
खून के विकार से उत्पन्न फोड़े-फुंसियों पर बेल के पेड़ की जड़ या लकड़ी को पानी में घिसकर लगाने से लाभ मिलता है
आयुर्वेद में जात्यादी तेल मलहम व्रण कुठार तेल गंधक रसायन विभिन्न प्रकार के गुग्गुलु योग रक्त शोधक आदि का प्रयोग किया जाता है चिकित्सक की सलाह से प्रयोग करें.
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