Wednesday 2 November 2016

गठिया


गठिया, सुनने में यह रोग आज जितना सामान्य लगता है इसमें तकलीफें उतनी ही अधिक हैं । वैसे तो गठिया का उपचार आज एलोपैथ, आयुर्वेद और होम्योपैथ- चिकित्सा की तीनों विधाओं में मौजूद है । जब एलोपैथ से इसमें खास आराम नहीं मिलता तो इस दुष्ट रोग से लड़ने के लिए आयुर्वेदिक पद्धति एक बेहतरीन विकल्प साबित होती है । आवश्यकता है, इस रोग के लक्षण पहचानकर, सही समय पर इसका उपचार किसी अच्छे आयुर्वेदिक विशेषज्ञ के परामर्श से करवाएं । आमवात जिसे गठिया भी कहा जाता है अत्यंत पीडादायक बीमारी है । अपक्व आहार रस याने “आम” वात के साथ संयोग करके गठिया रोग को उत्पन्न करता है । अत: इसे आमवात भी कहा जाता है। इस रोग में घुटनों व शरीर के दूसरे जोड़ों में दर्द शुरू हो जाता है, जिसमें यदि असावधानी बरतें तो यह आगे चलकर उंगलियों व जोड़ों में सूजन और लाल रंग का घाव उत्पन्न कर देता है । इतना ही नहीं, अनदेखी करने पर इससे हाथ-पैर टेढ़े हो जाते हैं । इस बीमारी में हाथ व पैर को हिलाना भी मुश्किल हो जाता है । यूरिक एसीड के कण(क्रिस्टल्स)घुटनों व अन्य जोड़ों में जमा हो जाते हैं । जोड़ों में दर्द के कारण रोगी का बुरा हाल रहता है । गठिया के पीछे यूरिक एसिड की प्रमुख भूमिका रहती है । इस रोग की सबसे बडी पहचान ये है कि रात को जोड़ों का दर्द बढता है और सुबह अकडन महसूस होती है । यदि शीघ्र ही उपचार कर नियंत्रण नहीं किया गया तो जोडों को स्थायी नुकसान हो सकता है । महिलाओं में एस्ट्रोजिन हार्मोन की कमी होने पर गठिया के लक्षण प्रकट होने लगते हैं । अधिक खाना और व्यायाम नहीं करने से जोडों में विकार उत्पन्न होकर गठिया जन्म लेता है । गठिया के मरीजों के लिए डाइट पर ध्यान देना बहुत जरूरी है । अधिक तेल व मिर्च वाले भोजन से परहेज रखें और डाइट में प्रोटीन की अधिकता वाली चीजें न लें । भोजन में बथुआ, मेथी, सरसों का साग, पालक, हरी सब्जियों, मूंग, मसूर, परवल, तोरई, लौकी, अंगूर, अनार, पपीता, आदि का सेवन फायदेमंद है । इसके अलावा नियमित रूप से लहसुन व अदरक आदि का सेवन भी इसके उपचार में फायदेमंद है । हर सिंगार (पारिजात) की 4-5 ताजी पत्तियां लेकर पानी के साथ पीस ले या पानी के साथ मिक्सर में चलालें । यह नुस्खा सुबह-शाम लें 3-4 सप्ताह में गठिया और वात रोग में जबरदस्त लाभ होगा । (बहुत कारगर है ये ) निशोथ, सेंधा नमक और सोंठ बराबर मात्रा में मिला कर एक ग्राम चूर्ण कांजी(एक खट्टा सा पेय) के साथ दिन में दो बार खाने के बाद लें । इससे दस्त होंगे और देह में संचित विषपदार्थ मल के द्वारा निकल जाते हैं । दस्तों से घबराने की आवश्यकता नहीं है किन्तु यदि अधिक हों तो मात्रा कम कर दें । इस चूर्ण को एक सप्ताह तक लेकर बंद कर दें । इसके बाद नीचे लिखी दवा का तीन दिन बाद सेवन कराएं । एरण्ड तेल दो चम्मच, रास्नासप्तक क्वाथ दो चम्मच मिला कर दिन में दो बार दें । इसे भी खाली पेट न लें और एक सप्ताह तक देने के बाद बंद कर दें जैसे कि ऊपर की दवा बंद की हैं । सोंठ 10 ग्राम, गोखरू 10 ग्राम मिलाकर 250 मिलीलीटर पानी में पकाएं । एक-चौथाई रह जाने के बाद छान कर प्रतिदिन दो बार आधा आधा करके पिलाएं । ये रोज ताजा बनाएं । नाश्ते के बाद ही लें यानि खाली पेट दवा नहीं लेनी है । चित्रकादि बटी एक-एक गोली दिन में तीन बार गर्म जल से लें । वातारि गुग्गुलु एक गोली, आमवातारि रस दो गोली, महायोगराज गुग्गुलु दो गोली, वातगजांकुश रस एक गोली को रास्नादि क्वाथ के दो चम्मच के साथ दिन में तीन बार लें । गज केशरी रस एक गोली, अश्वगंधादि गुग्गुलु दो गोली दिन में तीन बार अदरख के रस तथा शहद को मिला कर निगल लें । विषगर्भ तेल से मालिश करवाएं और फिर ऊपर से कपड़ा लपेट दें ताकि हवा न लग पाए । गर्म जल, बाजरा, मूंग, जौ, करेला, परवल, तोरई, लहसुन, प्याज, हींग, सोंठ, गोमूत्र, मूली, एरण्ड का तेल, दूध का सेवन करें । गुड़, अधिक जागना, बासी व गरिष्ठ भोजन, मांस, मछली, मल-मूत्र के वेग को रोकना व उड़द का सेवन न करें । दवाओं का सेवन कम से कम छह मास से साल भर तक करें । सभी मित्रों से निवेदन है की कृपा इसे कॉपी पेस्ट कर लें या शेयर कर लें । सबसे अच्छा किसी डायरी में नोट कर लें, ताकि किसी अन्य की भी सहायता की जा सके । धन्यवाद् सहित ।

No comments:

Post a Comment