मंडूर अथवा (लौह सिंहानिका,सिंहान,किट्टी,लौह का मैल)
गुण- प्राचीन ऋषियों के अनुसार जिस लोहे के जैसे गुण होते हैं वैसे ही गुण उसके मंडूर में भी उपलब्ध होते हैं.
लोहे को पिघलाने पर जो मैल लौह अशुद्धि के रूप में प्राप्त होता है वह मंडूर कहलाता है.इसका रंग काला वजन में भारी तथा स्वाद कसैला होता है.
औषधीय प्रयोजन के लिए 100 वर्ष या अधिक पुराना मंडूर सर्वोत्तम, 80 वर्ष पुराना मंडूर मध्यम और 60 वर्ष पुराना मंडूर अधम श्रेणी का माना गया है. 60 वर्ष से कम समय का मंडूर निकृष्ट और विष तुल्य होता है.
उत्तम मंडूर कौन सा है--- जो वजन करने में भारी हो, सतह जिसकी चिकनी हो,इसे तोड़ने पर ठोस हो.
औषधि निर्माण के लिए कैसा मंडूर लेना चाहिए--- पचासों वर्षों से यह वर्षा में भीगा हो, वर्षा प्रारंभ होने से पहले प्रथ्वी से निकलने वाली ऊष्मा में यह स्वेदित हुआ हो, गर्मी के दिनों में सूर्य के ताप से तप्त हुआ हो चंद्रमा की किरणों से यह सींचा गया हो. शीत ऋतू में यह सर्दी से ठंडा होता रहा हो. ऐसी प्राकृतिक परिस्थतियों में रहने के कारण पुराना मंडूर अमृत समान गुणों से युक्त हो जाया करता है.
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