बड़ा गोखरू (पत्ते,फल, एवं जड़ सहित ), विजय सार, चिरौंजी, साल की सारिल लकड़ी, खैर की सारिल लकड़ी, बबूल की छाल, अपामार्ग की जड़ –
इन सबको अलग-अलग कूट-पिस कर छान लें और बराबर मात्रा में मिला दें। यदि आपने इन सबका चूर्ण 250 ग्राम लिया है, तो
सोंठ, पीपल, कालीमिर्च, नाग केसर, दालचीनी, छोटी इलाइची, जायफल, कोहू के फूल, खीरे के बीज, लौंग, जावित्री, त्रिकुटा,अकरकरा, चीते की छाल, नागौरी असगंध – 25-25 ग्राम लेकर कूटकर छानकर उपर्युक्त चूर्ण में मिला दें।
फिर इसमें असली वंशलोचन, जो प्राकृतिक बाँस से उत्पन्न होता है और नीली झाई का होता है, 200 ग्राम पीस कर मिला दें।
इसे चौड़े मुह की शीशी या मर्तबान में रखकर खूब अच्छी तरह मिलाकर बंद करके रख लें।
मात्रा – 10 ग्राम प्रात: – 10 ग्राम शाम (गर्म दूध ताजेजल के साथ )
लाभ – इस चूर्ण के 45 दिन तक सेवन के बाद रक्त- प्रमेह यानी मूत्र से रक्त आना, पित्त का प्रकोप, पथरी, एवं मधुमेह नष्ट हो जाता हैं। इससे पेशाब की जलन, पेशाब का रूकना, स्वप्न दोष भी दूर हो जाता हैं। यह धातु के विकार को भी नष्ट करता है।
सामान्य औषधियाँ (एक सन्यासी का दिया हुआ हुआ नुस्खा )
A. अनार की कली, कत्था मिलाकर 5 ग्राम की मात्रा में (अनार कली 7; कत्था – 1 )
B. सौंफ, त्रिफला, गोखरू, हल्दी, वायविडंग-देवदारु- चूर्ण बनाकर इसमें इनके बराबर घुली भांग का चूर्ण मिला दें। 5 % कालीमिर्च का चूर्ण मिला दें। 5 ग्राम की मात्रा में सायंकाल।
No comments:
Post a Comment